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    प्रेम के फूल- ओशो

    Love Flowers - Osho


    प्रेम के फूल 

            प्रिय सोहन, प्रेम। तेरा पत्र मिला। कविता से तो हृदय फूल गया। सुना था प्रेम से काव्य का जन्म होता है, तेरे पत्र में उसे साकार देख लिया।। प्रेम हो तो धीरे-धीरे पूरा जीवन ही काव्य हो जाता है। जीवन सौंदर्य के फूल प्रेम की धूप में ही खिलते हैं। यह भी तूने खूब पूछा है कि मेरे हृदय में तेरे लिए प्रेम क्यों हैं? क्या प्रेम के लिए भी कोई कारण होते हैं ? और यदि किसी कारण से प्रेम हो तो क्या हम उसे प्रेम कहेंगे? पागल, प्रेम तो सदा ही अकारण होता है। यही उसका रहस्य और उसकी पवित्रता है। अकारण होने के कारण ही प्रेम दिव्य है और प्रभु के लोक का है। फिर, मैं तो उसी भांति प्रेम से भरा हूं, जैसे दीपक में प्रकाश होता है। पर उस प्रकाश के अनुभव के लिए आंखें चाहिए। तेरे पास आंख थीं तो तूने उस प्रकाश को पहचाना।  इसमें मेरी नहीं, तेरी ही विशेषता है। वहां सब को मेरे प्रणाम कहना। माणिक वावू और बच्चों को प्रेम । 

    रजनीश के प्रणाम 

    १२-३-१९६५ प्रति : सुश्री सोहन वाफना, पूना

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