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    संन्यासी बेटे का गौर - ओशो

      

    Saints-consider-son-Osho

    प्रिय आनंदमूर्ति, 

        प्रेम। 

                फौलाद के बनो-मिट्टी के होने से अव का नहीं चलेगा। संन्यासी होना प्रभु के सैनिक होना है। माता-पिता की सेवा करा। पहले से भी ज्यादा। संन्यासी बेटे का आनंद उन्हें दो। लेकिन, झुकना नहीं। अपने संकल्प पर दृढ़ रहना। इसी में परिवार का गौरव है। जो बेटा संन्यास जैसे संकल्प में समझौता कर ले वह कुल के लिए कलंक है। मैं आश्वस्त हूं तुम्हारे लिए। इसीलिए तो तुम्हारे संन्यास का साक्षी बना हूं। हंसो और सब झेलो। हंसो और सब सूनो। यही साधना है। आंधियां आएंगी और चली जाएगी। 



    रजनीश के प्रणाम
    १४-१०-१९७० प्रति : स्वामी आनंदमूर्ति, अहमदाबाद

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