संन्यास जीवन का परम भोग है - ओशो
प्रिय योग प्रिया,
प्रेम।
तेरे संन्यास से अत्यंत आनंदित हूं। जिस जीवन में संन्यास के फूल न लगें, वह वृक्ष वांझ है। क्योंकि, संन्यास ही परम जीवन संगीत है। संन्यास त्याग नहीं है। वरन, वही जीवन का परम भोग है। निश्चय ही जो हीरे मोती पा लेता है, उसे कंकड़ पत्थर छूट जाते हैं। लेकिन, वह छोड़ना नहीं, छूटना है।
रजनीश के प्रणाम
१५-१०-१९७० प्रति : मा योग प्रिया, संस्कार तीर्थ, आजोल, गुजरात
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