• Recent

    श्वास-श्वास में प्रेम हो - ओशो

      

    Love-for-breath-Osho

    प्रिय योग प्रेम, 

        प्रेम। 

                तेरा पत्र पाकर आनंदित हूं। प्रेम ही अब तेरे लिए प्रार्थना है। प्रेम ही पूजा है। प्रेम ही परमात्मा है। श्वास श्वास में प्रेम हो-बस अब यही तेरी साधना है। उठते-उठते सोते-जागते। बस एक ही स्मरण रखना-प्रेम का। और फिर तू पाएगी कि प्रभु का मंदिर दूर नहीं है। 

    रजनीश के प्रणाम 

    २५-१०-१९७० प्रति : मा योग प्रेम, संस्कार तीर्थ, आजोल, गुजरात

    कोई टिप्पणी नहीं