मिट और जान...खो और पा - ओशो
प्यारी जसू,
प्रेम।
सूर्य को पाने की अभीप्सा, है, तो जरूर ही पा सकेगी। लेकिन जलने का साहस चाहिए। बिना मिटे प्रकाश नहीं मिलता है। क्योंकि, हमारी अस्मिता ही अंधकार है। फिर सूर्य बाहर भी तो नहीं है। भीतर जब सब जलता है, तभी वह जन्मता है। स्व का जल मिटने का भय । आलोक है मिटने के लिए छलांग । मिट और जान। खो और पा। इसीलिए तो मैं प्रेम को प्रार्थना कहता हूं। क्योंकि वह मिटने की प्राथमिक शिक्षा है। रमा को प्रेम। सबको प्रणाम।
रजनीश के प्रणाम
११-४-१९७० प्रति। कुमारी जसु (अब मा योग प्रेम), राजकोट, संस्कार तीर्थ, आजोल, गुजरात
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