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    अनंत की यात्रा पर निकलो - ओशो

      

    Go-on-an-endless-journey-Osho

    प्रिय कृष्ण चैन्तय, 

        प्रेम। 

                तुम्हारे नए जन्म का साक्षी बनाकर आनंदित हूं। तुम्हारे कितने जन्मों का प्रयास था। लेकिन, नौका ने अब दिशा ले ली है और मैं निश्चित हूं। वचन था मेरा कभी का दिया, वह पुरा कर दिया है। अब तुम्हें अपना वचन पूरा करना है। देखना अवसर न खोना। समय थोड़ा है।

                और मेरा दुबारा मिलाना आवश्यक नहीं है। संकल्प को समग्रता से इकट्ठा कर लो। पतवार हाथ में लो और अनंत की यात्रा पर निकलो । तट रहते-रहते कितना काल व्यतीत हो गया है। हवाएं अनुकूल हैं। मैं जानता हूं इसीलिए इतने आग्रह से तट से धक्का दिया हूं। प्रभु कृपा बरस रही है। खुलोगे और उसे स्वयं में द्वार दो। नाचो और उसे पियो। अमृत के इतने निकट आकर प्यासे तो नहीं रहना है न? 

    रजनीश के प्रणाम 

    १५-१०-१९७० प्रति : स्वामी कृष्ण चैतन्य, संस्कार तीर्थ, आजोल, गुजरात

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