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    परमात्मा है असीम प्रेम - ओशो

      

    God-is-infinite-love-Osho

    चिदात्मन, 

        स्नेह। 

                साधना शिविर से लौटकर वाहर चला गा था। रात्रि ही लौटा हूं। इस बीच निरं तर आपका स्मरण बना रहा है। आपकी आंखों में परमात्मा को पाने की जिस प्यास को देखा हूं, और आपके हृदय की धड़कनों में सत्योपलब्धि के लिए जो व्याकुलता अ नूभव की है, उसे भूलना संभव भी नहीं था। ऐसी प्यास सौभाग्य है, क्योंकि उसकी पीड़ा से गुजरकर ही कोई प्राप्ति तक पहुंचता है। स्मरण रहे कि प्यास ही प्रकाश और प्रेम के जन्म की प्रथम शर्त है।

                और, परमात्मा प्रकाश और प्रेम के जोड़ के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है। प्रेम ही परिशुद्ध और पूर्ण प्रदीप्त होकर परमात्मा हो जाता है। प्रेम पर जब कोई सीमा नहीं होती है, तभी उस निर्धूम स्थिति में प्रेम की अग्नि परमात्मा बन जाती है। आपमें इस विकास की संभावना देखी है, और मेरी अंतरात्मा बहुत आनंद से भर गई है। बीज तो उपस्थित है, अब उसे वृक्ष बनाना है। और शायद वह समय भी निकट आ ग या है। परमात्मा अनुभूति की कोई भी संभावना के विना वास्तविक नहीं बनती है, इसलिए अब उस तरफ सतत और संकल्पपूर्ण ध्यान देना है। मैं बहुत आशा बांध रहा हूं। क्या आप उन्हें पूरा करेंगी? श्री माणिकलाल जी और मेरे सब प्रियजनों को वहां मेरे प्रणाम कहना। मैं पत्र की प्रतीक्षा में हूं। कोरे कागज की भी बात हुई थी, वह तो याद होगी न? शे ष शुभ। मैं बहुत आनंद में हूं। 



    रजनीश के प्रणाम
    २६-१०-१९६४ प्रति : सुश्री सोहन वाफना, पूना

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