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    अंसुअन-जल सीचि-सींचि प्रेम-वेलि बोई - ओशो

      

    Ansoon-Jal-Sichi-Sinchi-Prem-Veli-Boi-Osho

    प्रिय सोहन, 

        स्नेह। 

                इतनी ही रात्रि को दो दिन पूर्व तुझे चितौड़ में पीछे छोड़ आया हूं। प्रेम और आनंद से भरी तेरी आंखें स्मरण आ रही हैं। उनमें भर आए पवित्र आंसुओं में सारी प्रार्थना और पूजा का रहस्य छिपा हुआ है। प्रभू, जिन्हें धन्य करता है, उसके हृदय को प्रेम के आंसुओं से भर देता है। और, उन लोगों के दुर्भाग्य को क्या कहें, जिनके हृदय में प्रेम के आंसुओं की जगह घृणा को काटें हैं? प्रेम में वहे आंसू परमात्म के चरणों में चढ़ें फूल बन जाते हैं और जिन आंखों से वे व हते हैं, उन आंखों को दिव्य दृष्टि दे जाते हैं। 

                प्रेम से भरी आंखें ही केवल प्रभु को देख पाने में सफल हो पाती है; : क्योंकि प्रेम ही केवल ऐसी ऊर्जा है जो कि प्रकृति की जड़ता को पार कर पाती है और उस तट पहुं चाती है जहां कि परम-चैतन्य का आवास है। मैं सोचता हूं कि मेरे इस पत्र के पहुंचते माणिक वावू अवश्य ही तुझे लेकर काशीधा म पहुंच गए होंगे? राह कैसी वीती-पता नहीं। पर आशा करता हूं कि वह हंसते औ र गीत गाते ही बीती होगी। यहां अरविंद ने अनिल एंड कंपनी को ट्रेन पर बहुत खोजा, पर वह उनका कोई संधा न नहीं पा सका। वहां सबको मेरे विनम्र प्रणाम कहना! तेरे वायदा किए पत्रों की प्रतीक्षा है। माणिक व वूि को प्रेम। 



    रजनीश के प्रणाम
    ९-६-६५ प्रति : सूश्री सोहन, पूना

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