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    आस्तिकता-स्वीकार है, समर्पण है - ओशो

    Faithfulness-is-accepted-Osho-is-surrender


    प्रिय योग भगवती, 

        प्रेम। 

            आस्तिकता अनंत आशा का ही दूसरा नाम है। वह धैर्य । वह है प्रतीक्षा। वह है जीवन लीला पर भरोसा । आस्तिकता में इसलिए शिकायत का उपाय नहीं है। आस्तिकता स्वीकार है-आस्तिकता समर्पण है। स्वयं से जो पार है उसका स्वीकार। स्वयं का जो आधार है उसमें समर्पण। 

            सन १९१४ में टामस अल्वा एडिशन की प्रयोगशाला में आग लग गयी; जिसमें लगभग दो करोड़ रुपयों के यंत्र और एडिसन के जीवन भर के शोध कार्य से संबंधित कागज पत्र जलकर राख हो गए। दुर्घटना की खबर पाकर एडिसन का पुत्र चार्ल्स जव ढूंढ़ता हुआ पास उनके पहुंचा तो उसने उन्हें बड़े आनंद से एक जगह खड़े होकर उस आग को देखते हुए पाया। चार्ल्स को देखकर एडिसन ने उससे पूछा : तुम्हारी मां कहां है? उसे ढूंढो और फौरन यहां लाओ। ऐसा दृश्य वह फिर कभी न देख पाएगी! अगले दिन सुबह अपनी आशाओं और सपनों की राख में घूमते हुए उस ६७ वर्षीय अविष्कार ने कहा : “तवाही का भी कैसा लाभ है! हमारी सबकी सव गल्तियां जलकर राख हो गयी हैं! ईश्वर का शुक्र है कि अब हम नए सिरे से अपना काम शुरू कर सकते हैं।" प्रभु कृपा का अंत नहीं है,बस उसे देखने वाली आंखें भर चाहिए। 


    रजनीश के प्रणाम
    १४-१०-७० प्रति : मां योग भगवती, बंबई

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