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    संकल्प के पीछे-पीछे आती है साधना - ओशो

     

    Sadhana-comes-after-the-resolution-Osho

    प्यारी मौनू, 

        प्रेम। 

                संन्यास का संकल्प शूभ प्रारंभ है। संकल्प के पीछे-पीछे आते है साधना-छाया की भांति ही। मन में भी बीज बोने पड़ते हैं। और जो हम बोते हैं, उसकी ही फसल भी काट सकते हैं। मन में भी राहें बनानी पड़ती हैं। प्रभु का मंदिर तो है निकट ही–पर हमारा मन है एक वीहड़ वन-जिसमें से मंदिर त क मार्ग बनाना है। और प्रारंभ निकट से ही करना होता है। दूर जाने के लिए भी कदम तो निकट में ही उठाने पड़ते हैं। सत्य की यात्रा में ही नहीं- किसी भी यात्रा में प्रथम और अंतिम भिन्न-भिन्न नहीं हूं। वे दोनों एक विस्तार के दो छोर हैं-एक ही यथार्थ के दो ध्रव हैं। और फिर भी पहले कदम से अंतिम लक्ष्य का अनुमान भी नहीं होता है। और कभी-कभी तो पहला कदम अंतिम में असंगत ही मालूम होता है! चार्ल्स कैटरिंग ने एक मजेदार संस्मरण लिखा है। लिखा है : “मैंने एक मित्र से शर्त बंदी कि यदि मैं उसे एक पीजड़ा भेंट कर दूं तो उ से उसके लिए एक पक्षी खरीदना ही पड़ेगा। शर्त में यह शर्त भी थी कि पिंजड़ा उसे अपनी बैठक में लटकाना होगा। वह हंसा और उसने कहा कि पीजड़ा विना पक्षी के भ

                रह सकता है-इसमें ऐसी क्या बात है? खैर उसने चुनौती स्वीकार कर ली और मैं ने उसे स्वीटजरलैंड से बुलाकर एक सुंदर पीजड़ा भेंट कर दिया। स्वभावत: जो होना था, वही हुआ। जीवन के भी अपने तर्क हैं! जो भी खाली पिंजड़े को देखता, वह कह ता : आह! आपका पक्षी कव मर गया? मित्र कहते : मेरे पास कोई पक्षी कभी था ह नहीं? तब लोग आश्चर्य से पूछते : फिर यह खाली पीजड़ा यहां किसलिए है? अंतत : मित्र थक गए और एक पक्षी खरीद लाए। मैंने पूछा तो वोले : यही ज्यादा आसान था कि पक्षी खरीद लाऊं और शर्त हार जाऊं -बजाय सुबह से सांझ तक लोगों को समझाने के। और फिर दिन रात खाली पीजड़ा देख-देख मुझे भी खयाल आता रहता -पक्षी-पक्षी-पक्षी! संकल्प का पीजड़ा मन की बैठक में लटका हो तो साधना के पक्षी के आने में ज्यादा देर नहीं लगती है। 



    रजनीश के प्रणाम
    १-११-१९७० प्रति : सुश्री मौनू (क्रांति), जवलपुर

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