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    अनंत आशा ही पाथेय है- ओशो

     

    Infinite-hope-is-pathe-osho

    प्रिय कृष्ण करुणा, 

        प्रेम। 

            प्रभू को खोज में अनंत आशा के अतिरिक्त और कोई पाथेय नहीं है। आशा अंधेरे में ध्रुव तारे की भांति चमकती रहती है। आशा अकेलेपन में छाया की भांति साथ देती रहती है। और निश्चय ही जीवन-पथ पर बहुत अंधेरा है, और बहुत एकाकीपन है। लेकिन, केवल उन्हीं के लिए जिनके साथ कि आशा नहीं है। प्रसिद्ध भौगोलिक अन्वेषक डोनाल्ड मेकमिलन उत्तरी ध्रुव की यात्रा पर जाने की तैया री कर रहे थे कि उनके पास एक पत्र आया। लिफाफे के ऊपर लिखा था : “इसे तभ | खोला जाए जव कि वचने की कोई आशा शेष न रहे।" पचास साल बीत गए; मगर वह लिफाफा मेकमिलन के पास वैसा ही पड़ा रहा-वंद का बंद। एक वार किसी ने इसका कारण पूछा तो उन्होंने कहा : एक तो जिस अज्ञात व्यक्ति ने इसे भेजा था, मैं उसका विश्वास कायम रखना चाहता था। और, दूसरे मैंने कभी आशा नहीं छोड़ी।" आह! कैसे बहुमूल्य शब्द हैं कि “मैंने कभी आशा नहीं छोड़ी।" 


    रजनीश के प्रणाम
    २०-११-१९७० प्रति : मां कृष्ण करुणा, बंबई

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