मिटो ताकि हो सको - ओशो
मेरे प्रिय,
प्रेम।
मैं कहता हूं, मिटो ताकि हो सको। बीज मिटता है तब वृक्ष बनता है। बूंद मिटती है तो सागर हो जाती है। और मनुष्य है कि मिटना ही नहीं चाहता है ? फिर परमात्मा प्रकट कैसे हो? मनुष्य वीज है, परमात्मा वृक्ष है। मनुष्य वृंद है, परमात्मा सागर है।
रजनीश के प्रणाम
२५-१०-१९६९ प्रति : श्री शिव, जबलपुर
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