जिन खोया तिन पाइयां - ओशो
मेरे प्रिय,
प्रेम।
सत्य कहां है? खोजो मत। खोजने से सत्य मिला ही कब है? क्योंकि, खोजने में खोजने वाला जो मौजूद है। इसलिए, खोजो मत-खो जाओ। जो स्वयं मिट जाता है, वह सत्य को पा लेता है। मैं नहीं कहता, जिन खोजा तिन पाइयां। मैं कहता हूं, जिन खोया तिन पाइयां।
रजनीश के प्रणाम
१-८-१९६९ प्रति : स्वामी क्रियानंद, बंबई
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