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    सत्य शब्दातीत है - ओशो

    Truth-is-untimely-Osho


    प्रिय योग लक्ष्मी, 

        प्रेम। 

            विटगेंस्टीन ने कहीं कहा है : जो न कहा जा सके, उसे नहीं कहना चाहिए। (राज पिबी बंद दवज इमपक, उनेज दवज इम पक) काश! यह बात मानी जा सकती तो सत्य के संबंध में व्यर्थ के विवाद न होते। क्योंकि, “जो है" (राज रूीपवी टे) उसे कहा नहीं जा सकता है। या, जो भी कहा जा सकता है, वह वही नहीं है, नहीं हो सकता है जो कि है। सत्य शब्दातीत है। इसलिए, सत्य के संबंध में मौन ही उचित है। पर मौन अति कठिन है। मन उसे भी कहना चाहता है, जिस कि कहा नहीं जा सकता है। 

            असल में मन ही मौन में बाधा है। मौन अ-मन (छव ऊपदक) की अवस्था है। एक उपदेशक छोटे बच्चों में बोलने के लिए आया था। उसने बोलना शुरू करने के पहले बच्चों से पूछा : इतने होशियार बच्चे और बच्चियों के समक्ष जो कि तुमसे एक अच्छे भाषण की अपेक्षा रखते हैं, तुम क्या बोलोगे यदि तुम्हारे पास बोलने को कुछ भी न हो? एक छोटे से बच्चे ने कहा : “मैं मौन रहूंगा" (ट वनसक मिमच रुनपमज) "मैं मौन रहूंगा"-इस सत्य के प्रयोग के लिए एक छोटे बच्चे जैसी सरलता आवश्यकहै। 


    रजनीश के प्रणाम
    ५-९-१९७० प्रति : मां योग लक्ष्मी, बंबई

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