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    मृत्यु का वोध - ओशो

    Vodh-of-death-Osho


    प्रिय मथुरा वाबू, प्रेम। 

            आपका पत्र मिला है। यह जानकर आनंदित हूं कि मां की मृत्यु से आपको स्वयं की मृत्यु का खयाल आया है। मृत्यु के वोध में से ही अमृत की उपलब्धि की संभावना है। मृत्यु की चोप सदा गहरी है लेकिन मनुष्य का मन चालाक है और उसे भी टाला जा ता है। आप टालना मत। स्वयं को समझना मत। किसी भी भांति की सांत्वना आत्मघात है। मृत्यु के घाव को ठीक से बनने देना। जागना और उस घाव के साथ जीना। कठिन होगा यह जीना। लेकिन, कठिनाई के विना क्रांति भी तो नहीं है। मृत्यु है। सदा साथ है। 

            लेकिन, हम उसे विस्मरण किए रहते हैं। मृत्यू रोज है। प्रतिपल है। लेकिन, हम उसके प्रति बेहोश बने रहते हैं। और इस कारण ही हमें इस जीवन का भी कोई पता नहीं चलता है। मृत्यु से बचने में मनुष्य जीवन से भी चूक जाता है। क्योंकि वे दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। क्योंकि वह दोनों एक ही गाड़ी के दो चाक हैं। और जो उन दोनों को ही जान लेता है, उसके लिए वे दोनों एक ही हो जाते हैं। उस एकता का नाम ही अस्तित्व है। और उस अस्तित्व में होना ही मुक्ति है। 


    रजनीश के प्रणाम
    ११-२-१९७० प्रति : श्री मथुरा प्रसाद मिश्र, पटना, बिहार

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