दस जीवन सूत्र - ओशो
प्रिय रामचंद्र प्रेम!
मेरी दस आज्ञाएं (मं विउउंदकउमदजे) पूछी हैं। बड़ी कठिन बात है। क्योंकि, मैं तो किसी भी भांति की आज्ञाओं के विरोध में हूं। फिर भी, एक खेल रहेगा इसलिए लिखता हूं :
१ किसी की आज्ञा कभी मत माना जब तक कि वह स्वयं की ही आज्ञा न हो।
२ जीवन के अतिरिक्त और कोई परमात्मा नहीं है।
३ सत्य स्वयं है, इसलिए उसे और कहीं मत खोजना।
४ प्रेम प्रार्थना है।
५ शून्य होना सत्य का द्वार है। शून्यता ही साधना है, साध्य है, सिद्धि है।
६ जीवन है अभी और यही।
७ जियो और जागे हुए।
८ तैरो मत-बहो।
९ मरो प्रतिपल ताकि प्रतिपल नए हो सको।
१० खोजो मत। जो है-है। रुको और देखो।
रजनीश के प्रणाम
८-४-१९७० प्रति : डा. रामचंद्र प्रसाद, पटना विश्वविद्यालय, पटना
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