जीवन में इतना दुख क्यों है ? - ओशो
मेरे प्रिय,
प्रेम।
मनुष्य के जीवन में इतना दुख क्यों है? क्योंकि, उसके जीवन में स्वरों की तो भीड़ है, लेकिन, स्वर शून्यता बिलकुल नहीं है। क्योंकि, उसके जीवन में विचारों का शोर-गुल तो बहुत है, लेकिन, निर्विचार का मौन बिलकुल नहीं है। क्योंकि, उसके जीवन में भावनाओं का क्षोभ तो वहुत है, लेकिन, निर्भाव की समता बिलकुल नहीं है। क्योंकि, अदिशा में ठहराव बिलकूल नहीं है। और, अंतत: क्योंकि, उसके जीवन में वह तो अतिशय है, लेकिन परमात्मा विलकुल नहीं है।
रजनीश के प्रणाम
१-४-१९७० प्रति : श्री शिव, जबलपुर
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