आंखें खोलो और देखो - ओशो
प्यारी कुसुम,
प्रेम।
संसार है निर्वाण। ध्वनि मात्र है मंत्र। और, प्राणि मात्र परमात्मा । बस, सब कुछ स्वयं की दृष्टि पर निर्भर है। दृष्टि के अतिरिक्त सृष्टि और कुछ भी नहीं है। देखो-आंखों खोलो और देखो। अंधकार कहां है? आलोक ही है। मृत्यु कहां है? अमृतत्व ही है। कपिल को प्रेम। असंग को आशीष। +
रजनीश के प्रणाम
१७-११-१९७० प्रति : सुश्री कुसुम , द्वारा श्री कपिल मोहन चांघोक, ९० ए, इंडस्ट्रियल एरिया, क्वा लटी आइसक्रीम कंपनी, ओसवाल रोड, लुधियाना, पंजाव
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