सपने : बंद व खुली आंखों के - ओशो
प्यारी गुणा, प्रेम।
स्वप्न भी सत्य है। क्योंकि, जिसे हम सत्य कहते हैं, वह भी स्वप्न से ज्यादा कहां है? खुली और बंद आंख से ज्यादा अंतर भी क्या है। इस बात को ठीक से समझ ले। क्योंकि तब दोनों के ही पार उठा जा सकता है। और दोनों के पार ही मार्ग है। क्योंकि, दोनों दर्शन हैं और दोनों के पार वह है जो कि द्रष्टा है। ईश्वर वावू को प्रेम। बच्चों को आशीष।
रजनीश के प्रणाम८-४-७० प्रति : सुश्री गुणा शाह, बंबई
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