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    खोज-खोज-और खोज - ओशो

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    प्यारी कुसुम, प्रेम। 

            खोज-खोज-और खोज। इतना कि अंततः खोजते-खोजते स्वयं ही खो जावें।बस वही बिंदु उसके मिलन का है। इधर मैं मिटा, उधर वह हुआ। मैं के अतिरिक्त और कोई दीवार न कभी थी, न है। कपिल को प्रेम। असंग को आशीष। 


    रजनीश के प्रणाम
    ८-४-७०

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