जागकर देखें-मैं है ही नहीं - ओशो
प्रिय मायाजी, प्रेम।
आपका पत्र पाकर आनंदित हूं। मैं को छोड़ना नहीं है। क्योंकि, जो है ही नहीं, उसको छोड़ियेगा कैसे? मैं को समझना है-खोजना है। वैसे ही जैसे कोई प्रकाश लेकर अंधकार को खोजे और अंधकार खो जाए। अंधकार मिटाया नहीं जा सकता है, क्योंकि वह है ही नहीं है। बस प्रकाश ही जलाया जा सकता है। हां-प्रकाश के आते ही पाया जाता है कि अंधकार नहीं है। ऐसे ही विचारों से भी न लड़ें। निर्विचार होने का प्रयास करना भी विचार ही है। विचारों के प्रति जागे-सचेत हों-साक्षी बनें। और फिर वे अनायास ही शांत हो जाते हैं। साक्षी भाव अंततः शून्य में उतार देता है। और जहां शून्य है, वहीं पूर्ण है।
रजनीश के प्रणाम
८-४-७० प्रति : श्रीमती मायादेवी जैन, चंडीगढ़, पंजाब
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