सत्य है सदा सूली पर - ओशो
प्यारी जयति, प्रेम।
तेरा पत्र मिला है। पगली! मेरे लिए कभी भी, भूलकर भी चिंतित मत होना। दो कारणों से: एक तो प्रभु के हाथों में जिस दिन से स्वयं को सौंपा है, उसी दिन से सब चिंताओं के पार हो गया हूं। असल में, स्वयं को ही सम्हाल ने के अतिरिक्त और कोई चिंता ही हनीं है। अहंकार ही चिंता है। उसके पार तो कैसी चिंता-किसको चिंता-किसकी चिंता? दूसरे मेरे जैसे व्यक्ति सूली चढ़ने को ही पैदा होते हैं। वही हमारा सिंहासन है। फूल नहीं-पत्थर बरसें तभी हमारा कार्य हो पाता है। लेकिन, प्रभु के मार्ग पर पत्थर भी फूल अंतत: पत्थर सिद्ध होते हैं। इसलिए, जब मुझ पर पत्थर बरसें तव खुश होना और प्रभु को धन्यवाद देना। सत्य का सदा ही, ऐसा ही स्वागत होता है। न माने मन तो पूछ सुकरात से? जीसस से? कवीर से? मीरा से? सवको प्रणाम।
रजनीश के प्रणाम
१०-६-७० प्रति : सुश्री जयवंती, जूनागढ़
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