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    खोजो मत-खाओ - ओशो

    Find-Do-Eat-Osho


    प्रिय सत्यानंद, प्रेम। 

            मेरे शुभाशीष। सत्य में जियो-क्योंकि सत्य को जानने का कोई उपाय नहीं है। सत्य ही हो जाओ-क्योंकि सत्य केवल सत्य होकर ही जाना जा सकता है। शब्द से सत्य नहीं मिलता है। न शास्त्र से। न चिंतन, अध्ययन या मनन से ही। सत्य है स्वयं में स्वयं की शून्यता में। निर्विचार में, निर्विषय चित्त में। चेतना ही है जहां केवल वहीं सत्य का उदघाटन है। सत्य तो है ही। उसे पाना नहीं है। वस, अनावृत ही करना है। और वह जिस स्वर्ण पात्र से ढंका है, वह हमारा ही अहंकार है। अहंकार है अंधकार। मिटो और आलोक हो जाओ। और जहां अहंकार का अंधकार नहीं है, वहीं उस शून्यलोक में सत्य है। वही सत्य है। वही आनंद है। वही अमृत है। उसे खोज मत-वरन उसके लिए खो जाओ और उसे पा लो 

    रजनीश के प्रणाम
    १२-११-१९७० प्रति : योग सत्यानंद, टीकमगढ़ (म. प्र.)

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