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    विचारों की चरम सीमा - ओशो

     

    Extremes-of-thoughts-Osho

     मेरे प्रिय, प्रेम। 

            विचार ही मनुष्य की शक्ति है। और वही विश्वास ने उससे छीन ली है। मनुष्य इसीलिए दीन-हीन और निर्वीर्य हो गया है। खूव विचार करो। अथक विचार करो। और आश्चर्य तो यह है कि विचारों की चरम सीमा पर ही निर्विचार दशा उपलब्ध ह ती हैं। वह विचार की पूर्णता है। और इसलिए उस दशा में विचार भी व्यर्थ सिद्ध होता हैं। उस शून्य में ही सत्य होता है। 


    रजनीश के प्रणाम
    प्रति : श्री प्रेमशंकर पांडे, मनमाड़ (महाराष्ट्र)

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