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    प्रगाढ़ संकल्प - ओशो

    Strong-Resolution-Osho


    प्रिय, शिरीष, 

            मैं प्रवास से लौटा हूं तो तुम्हारा पत्र मिला है। जिस संकल्प का तुम्हारी अंतरात्मा में जन्म हो रहा है, मैं उसका स्वागत करता हूं। संकल्प की प्रगाढ़ता ही सत्य तक ले जा ती है क्योंकि उसकी ही आधारभूमि पर स्वयं में अंतर्निहित शक्तियां जाग्रत होती हैं और असंगठित प्राण संगठित हो संगीत को उपलब्ध होते हैं। स्वयं के अणु में कितनी विराट ऊर्जा है, उसे तो संकल्प की परत तीव्रता के अतिरिक्त और किसी भी भांति नहीं जाना जा सकता है। क्या तुमने ऐसी चट्टाने नहीं देखी हैं, जिन्हें कि मजबूत से म जबूत छैनी से भी तोड़ा नहीं जा सकता है; लेकिन उन्हीं चट्टानों को किसी झाड़ी या पौधे का अंकुरण सहज दरारों से भर देता है। 

            एक छोटा सा वीज भी जब ऊपर उठने और सूर्य को पाने के संकल्प से भर उठता है तो चट्टानों को भी उसे मार्ग देना ही पड़ता है। कमजोर वीज भी शक्तिशाली चट्टानों से जीत जाता है। कोमल वीज भी क ठोर से कठोर चट्टान को तोड़ देता है। क्यों? क्योंकि चट्टान चाहे कितनी ही शक्तिशा ली क्यों न हो, मृत है और मृत है इसलिए संकल्पहीन है। वीज है कोमल और कमज र किंतु जीवत। स्मरण रहे कि जीवन संकल्प में है। संकल्प जहां नहीं, वहां जीवन भी नहीं है। बीज का संकल्प ही शक्ति बन जाता है। उस शक्ति को पाकर ही उसकी छोटी-छोटी जड़ें चट्टान में प्रवेश करने लगती हैं और क्रमश: फैलने लगती हैं और एक दिन चट्टान को तोड़ डालती है। जीवन सदा ही मृत्यु से जीत जाता है। भीतर की जीतित शक्ति वा हर की मृत वाधाओं से न कभी हारी है, न कभी हार ही सकती है। 


    रजनीश के प्रणाम
    २-४-१९६६ प्रति : सुश्री शिरीष पै, बंबई

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