साधना के लिए श्रम और संकल्प - ओशो
प्रिय शिरीष, प्रेम।
उस दिन मिलकर मैं बहुत आनंदित हुआ हूं। तुम्हारे हृदय में जो आंदोलन चल रहा है, वह भी मैंने अनुभव किया और वह अभीप्सा भी जो कि तुम्हारी आत्मा में | छपी है। तुम अभी तक अपने उस व्यक्तित्व को नहीं पा सकी हो, जिसे पाने के लिए पैदा हुई हो। उसका बीज अंकुरित होना चाहता है। और भूमि भी तैयार है और बहु त प्रतीक्षा की जरूरत नहीं है। श्रम करना होगा और संकल्प को इकट्ठा करना होगा। एक बार यात्रा प्रारंभ होने की ही बात है फिर तो परमात्मा का गुरुत्वाकर्षण खूद ही खींचे लिए जाता है।
रजनीश के प्रणाम
२६-३-१९६६ प्रति : सुश्री शिरीष पै, बंबई
कोई टिप्पणी नहीं