प्रेम की वर्षा - ओशो
प्यारी जया, प्रेम।
तेरा पत्र मिला है। प्रेम मांगना नहीं पड़ता है और मांगे से वह मिलता भी नहीं है। प्रेम तो देने से आता है। वह तो हमारी ही प्रतिध्वनि है। मैं प्रेम बनकर तो ऊपर बरसता हुआ प्रतीत हो रहा हूं क्योंकि तू मेरे प्रति प्रेम की स रिता बन गई है। ऐसे ही जिस दिन सारे जगत के प्रति तेरे प्रेम का प्रवाह बहेगा, उस दिन त पाएगी कि सारा जगत ही तेरे लिए प्रेम बन गया है। जो है-उस समय के प्रति बेशर्त प्रेम का प्रत्युत्तर ही तो परमात्मा की अनुभूति है।
रजनीश के प्रणाम
१८-८-१९६९ प्रति : सुश्री जयवंती, जूनागढ़
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