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    साधना में धैर्य - ओशो

    Patience-in-practice-Osho


    प्रिय आत्मन, प्रणाम। 

            आपके पत्र यथा समय मिल गए थे–पर मैं बहुत व्यस्त था इसलिए शीघ्र उत र नहीं दे सका। इस बीच निरंतर बाहर ही था; अभी जयपुर, बुरहानपुर, होशंगाबाद,के जन्म चांदा आदि जगहों पर बोलकर लौटा हूं। लोग आत्मिक जीवन के लिए कितने प्यासे हैं! यह देखकर उन लोगों पर आश्चर्य होता है, जो कहते हैं कि लोगों की धर्म में रु च नहीं रह गई है। यह तो कभी संभव ही नहीं है। धर्म से अरुचि का अर्थ है-जीवन में, आनंद में, अमृत में अरुचि। चेतना स्वभाव से ईश्वररोन्मुख है! स्वरूपतः सच्चिदानं द ब्रह्मा को पाकर ही उसकी तृप्ति है। वह, जो उसमें बीज की भांति छिपा है। यहीपलिए धर्मों के जन्म होंगे, और मृत्यु होंगी, लेकिन धर्म शाश्वत है। यह जानकर बहुत आनंद होता है कि आप धैर्य से प्रकाश पाने के लिए चल रहे हैं। 

            सधिना के जीवन में धैर्य सबसे बड़ी बात है। वीज को वोकर कितनी प्रतीक्षा करनी हो ती है। पहले श्रम व्यर्थ ही गया दीखता है। कुछ भी परिणाम आता हुआ प्रतीत नहीं होता। पर एक दिन प्रतीक्षा प्राप्ति में बदलती है। वीज फटकर पौधे के रूप में भूमि के बाहर आ जाता है। पर स्मरण रहे जब कोई परिणाम नहीं दिख रहा था, तब भी भूमि के नीचे विकास हो रहा था। ठीक ऐसा ही साधक का जीवन है। जब कुछ भी न हीं दिख रहा होता, तब भी बहुत कुछ होता है। सच तो यह है कि-जीवन शक्ति के

            समस्त विकास अदृश्य और अज्ञात होते हैं। विकास नहीं, केवल परिणाम ही दिखाई पड़ते हैं। मैं आनंद में हूं। प्रभु का सान्निध्य आपको मिले यही कामना है। साध्य कि चिंता छोड़ कर साधना करते चलें फिर साध्य तो आपने आप निकट आता जाता है। एक दिन अ |श्चर्य से भरकर ही देखना होता है कि यह क्या हो गया है! मैं क्या क्या क्या हो गय । हूं! तब जो मिलता है उसके समझ उसे पाने के लिए किया गया श्रम न कुछ मालू म होता है। सबको मेरा प्रेम कहें। 


    रजनीश के प्रणाम
    प्रति : लाला सुंदरलाल, दिल्ली

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