प्रभु की प्यास- ओशो
प्यारी कुसुम, प्रेम।
तेरा पत्र मिल गया है। गर्मी के बाद जैसे धरती वर्षा के लिए प्यासी होती है; ऐसे ही तू प्रभू के लिए प्यासी है। यह प्यास ही तो उसकी बदलियों के लिए निमंत्रण बन जाती है। और निमंत्रण पहुंच गया है। तू तो बस ध्यान में ही डूबती जा । उसकी करुणा की वर्षा तो होगी ही। बस इधर तू तैयार भर हो-वह तो उधर सदा ही तैयार है। देख-क्या आकाश में उसकी बदलियां नहीं मंडराने लगी हैं। कपिल से प्रेम। असंग को आशीष।
रजनीश के प्रणाम
१६-२-७० प्रति : सुश्री कुसुम बहिन,लुधियाना
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