विलकुल ही टूट जा, मिट जा - ओशो
प्यारी अनुसूया,प्रेम।
लिखा है तूने कि टूट सी गई है। अच्छा है कि बिलकुल ही टूट जा, मिट ही जा। जो है-वह तो सदा ही है, लेकिन जो हुआ है वह तो टूटेगा ही। होना मिटाने की तैयारी है। और इसलिए स्वयं को बचाना ही मत। जो बचाता है, वह नहीं बचता है। और जो मिट जाता है वह उसे पा लेता है जो कि मिटने और बनने के बाहर है। लेकिन तू स्वयं को बचाने में लगी है! इसलिए तो टूट अखरता है! लेकिन बचाने को है भी क्या? और जो बचाने योग्य है वह तो बचा ही हुआ है।
रजनीश के प्रणाम१६-२-७० प्रति : सुश्री अनुसूया बहन, बंबई
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