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    जियो उन्मुक्त, पल-पल - ओशो

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    मेरे मित्र, प्रेम। 

            आनंद को चाहो ही मत। क्योंकि, वह चाह ही आनंद के मार्ग में बाधा है। जीवन को जियो। चाह के किनारों में बांधकर नहीं। लक्ष्य की मंजिल को ध्यान में रखकर नहीं। जियो। उन्मुक्त। जियो। पल पल। और डरो मत। भयभीत न होओ। क्योंकि खोने को कुछ भी नहीं है ? और पाने को कुछ भी नहीं है। और जिस क्षण ऐसे हो रहोगे उसी क्षण जीवन का सब कुछ मिल जाता है। लेकिन, भूल की भी जीवन के द्वार पर भिखारी होकर मत जाना। कुछ मांगते हुए मत जाना। क्योंकि वह द्वार भिखारियों के लिए कभी खुलता ही नहीं है। 

    रजनीश के प्रणाम
    १७-२-७० प्रति : श्री जयंत भट, नारगोल, जिला वलसाड, (गुजरात)

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