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    काम-वृत्ति पर ध्यान - ओशो

    Meditation-on-career---Osho


    मेरे प्रिय, प्रेम। 

            तुम्हारा पत्र मिला। काम वासना से भयभीत न हों। क्योंकि भय हार की शुरुआत है। उसे भी स्वीकार करें। वह भी है और अनिवार्य है। हां-उसे जानें जरूर-पहचानें। उसके प्रति जागें। उसे अचेतन (न्नदववदेवपवने) से चेतन (विदेवपवने) वनावें। निंदा से यह कभी भी नहीं हो सकता है। क्योंकि, निंदा दमन (त्तमचतमेपवद) है। 

            और दमन ही वृत्तियां को अचेतन में ढकेल देता है। वस्तुतः तो दमन के कारण ही चेतना चेतन और अचेतन में विभाजित हो गई है।और यह विभाजन समस्त द्वंद्व (विदसिपवज) का मूल है। यह विभाजन ही व्यक्ति को अखंड नहीं बनने देती है। और अखंड बने बिना शांति का, आनंद का, मुक्ति का कोई मार्ग नहीं है। इसलिए काम-वासना पर ध्यान करो। जब वह वृत्ति उठे तो ध्यान पूर्वक (ऊपदकनिससल) उसे देखो। न उसे हटाओ, न स्वयं उससे भागो।। उसका दर्शन अभूतपूर्व अनुभूति में उतार देता है। और ब्रह्मचर्य इत्यादि के संबंध में जो भी सीखा सुना हो, उसे एकबारगी कचरे की टोकरी में फेंक दो। क्योंकि, इसके अतिरिक्त ब्रह्मचर्य को उपलब्ध होने का और कोई मार्ग नहीं है। वहां सबको मेरा प्रणाम। 


    रजनीश के प्रणाम
    १६-२-७० प्रति : श्री जयंतीलाल, भावनगर, गुजरात

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