अनंत प्रतीक्षा ही साधना है - ओशो
प्यारी कंचन, प्रेम।
तेरा पत्र मिले बहुत देर हो गई है। और प्रत्युत्तर की प्रतीक्षा करते करते भी तू थक गई होगी! लेकिन धैर्य पूर्ण प्रतीक्षा का अपना ही आनंद है। परमात्मा के पथ पर तो अनंत-प्रतीक्षा ही साधना है। प्रतीक्षा और प्रतीक्षा और प्रतीक्षा...और फिर जैसे कली फूल बनती है, वैसे ही सब कुछ अपने आप हो जाता है। नारगोल तो आ रही है न? वहां सबके प्रणाम।
रजनीश के प्रणाम
२-१०-६८ प्रति : सुश्री कंचन बहुन, बलसार, गुजरात
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