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    जीवन के अनंत रूपों का स्वागत - ओशो

    Welcome-to-the-infinite-forms-of-life-Osho


    प्यारी अनसूया, प्रेम। 

            तेरे पत्र ने हृदय को आनंद से भर दिया है। एक बड़ी क्रांति के द्वार पर तू खड़ी है। और तू उससे भागना भी चाहे तो मैं तुझे भागने  न दूंगा। उसमें निश्चय ही तुझे मिटना होगा। लेकिन इसीलिए कि नयी होकर तू प्रकट हो सके। स्वर्ण को अग्नि से गुजरना पड़ता है और तभी वह शुद्ध हो पाता है। प्रेम तेरे लिए अग्नि है। उसमें तेरे अस्मिता जल जाए ऐसी ही प्रार्थना में प्रभु से करता हूं। और प्रेम आए तो फिर प्रार्थना भी आ सकती है। प्रेम के अभाव में तो प्रार्थना असंभव है और ध्यान रखना कि शरीर और आत्मा दो नहीं हैं। व्यक्तित्व का जो हिस्सा दिखाई पड़ता है वह शरीर है और जो नहीं दिखाई पड़ता है, वह आत्मा है। और यही सत्य पदार्थ और परमात्मा के संबंध में भी सत्य है। दृश्य परमात्मा पदार्थ है और अदश्य पदार्थ परमात्मा है। जीवन के सहजता और सरलता से ले। स्वीकार से उसके अनंत रूपों का स्वागत कर।

            और जीवन पर स्वयं को मत थोप। जीवन का अपना अनुशासन है, अपना विवेक है आर जो उसे समग्रता से जीने को तै यार हो जाते हैं, उन्हें फिर किसी और अनुशासन और विवेक की आवश्यकता नहीं र ह जाती है। लेकिन तू सदा जीवन से भयभीत रही है। इसीलिए प्रेम से भयभीत है। लेकिन वह क्षण आ ही गया कि जीवन तेरी सुरक्षा दीवारों को तोड़ कर भीतर आ ग या है। वह प्रभु की तुझ पर अनंत कृपा है। अब उससे भाग मत। अनुग्रहपूर्वक उसे भेंट ले। और मेरी शुभकामनाएं तो सदा तेरे साथ ही हैं। 


    रजनीश के प्रणाम
    ३-११-६९ प्रति : सुश्री अनसूया, बंबई

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