मौन अभिव्यक्ति - ओशो
प्यारी कुसुम प्रेम।
तेरे हृदय की भांति ही सरल और कुआंरा पत्र पाकर अति आनंदित हूं। वह तू लिखना चाहती है जो कि लिखा ही नहीं जा सकता है, इसलिए अनलिखा पत्र ही भेज देती है। यह भी ठीक ही है; क्योंकि जो न कहा जा सके, उस संबंध में मौन ही उचित है। लेकिन ध्यान रहे कि मौन भी मुखर है। वह भी कहता है और बहुत कहता है। शब्द जिसे नहीं कह पाते हैं, मौन उसे भी कह पाता है। रेखाएं जिसे नहीं घेर पाती हैं, शून्य उसे भी घेर लेता है। असल में तो शून्य से अनघिरा वच ही क्या सकता है? मौन से अनकहा कभी कुछ नहीं बचता है। शब्द जहां व्यर्थ है, निशब्द वहीं सार्थक है। आकार की जहां सीमा है, निराकर का वहीं प्रारंभ है। इसीलिए वेद का जहां अंत है, वेदांत का वही जन्म है। वेद की मत्य ही वेदांत है।। शब्द से मुक्ति ही सत्य है। कपिल को प्रेम। असंग को आशीष।
रजनीश के प्रणाम३-११-६९ प्रति : श्रीमती कुसुम, लुधियाना, पंजाब
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