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    प्रेम के स्वर - ओशो

    Voice-of-love-Osho


    प्यारी शिरीष 

            प्रेम से बड़ी चीज और देने को क्या है? और फिर भी तू कहती है : क्या दिया है मैंने ? पागल! प्रेम देने के बाद तो फिर न देने का ही कुछ बचता है और देने वाला हीबचता है। क्योंकि प्रेम देना वस्तुत: स्वयं को ही देना है। तूने दिया है स्वयं को। और अव तू कहां है? और स्वयं को खोकर अब तू निश्चय ही उस शिरीष को पा लेगी जिसे कि पाना चाह ती थी। उस शिरीष का जन्म हो गया है। मैं हूं साक्षी उनका। मैं हूं उसका गवाह । व ह संगीत मैं सुन रहा हूं जो तु बनेगी। उस दिन हृदय जब हृदय के निकट था तभी सुन लिया था उस संगीत को। वुद्धि जानती है वर्तमान को लेकिन हृदय के लिए तो भविष्य भी वर्तमान ही है। 


    रजनीश के प्रणाम
    ५-४-१९६७ प्रति : सुश्री शिरीष पै, बंबई

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