वर्तमान में अशेष भाव से जीना - ओशो
प्यारी शिरीष,
यह शुभ है कि तू अतीत को भूल रही है। इससे जीवन के एक विलकुल ही अभिनव दिशा आरंभ होगी। वर्तमान में पूरी तरह होना ही मुक्ति है। चित्त स्मृति के अतिरिक्त अतीत की कोई सत्ता नहीं है और ना ही गगन विहारी कल्पना को छोड़ भविष्य का ही कोई अस्तित्व है। जो है, वह तो सदा वर्तमान है। उस वर्तमान में जो अशेष भा व से जीने लगता है, वह परमात्मा में ही जीने लगता है। अतीत और भविष्य से मूक त होते ही चित्त शांत और शून्य हो जाता है। उसकी लहरें विलीन हो जाती हैं और तव तो वही बचता है जो कि असीम है और अनंत है। वह सागर ही सत्य है। तेरी सरिता उस सागर तक पहुंचे यही मेरी कामना है।
रजनीश के प्रणाम
१९-२-६६ पुनश्च : संभवतः जनवरी में मैं अहमदावाद जाऊं-क्या तू मेरे साथ वहां चल सकेगी। किसी प्रवास में दो-चार दिन साथ रहे तो अच्छा हो। प्रति :सुश्री शिरीष पै, बंबई
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