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    सेक्स-ऊर्जा का रूपांतरण - ओशो

    Sex-energy-conversion-Osho


    प्रिय शिरीष, प्रेम। 

            पत्र मिला। एमग के संबंध में पूछा है। वह शक्ति भी परमात्मा की है। साधना से क्रमशः उसका भी रूपांतरण (तंदेवितउंजपवद) हो जाता है।  शक्ति तो कोई भी बूरी नहीं है। हां, श क्तियां के वूरे उपयोग अवश्य हैं। काम-वासना ही जव ऊर्ध्वगामी होती है तो ब्रह्मचर्य बन जाती है। एमग के प्रति विरक्ति आ रही है, यह शुभ है पर इतना ही पर्याप्त नहीं है। उसके रू पांतरण की दिशा में विधायक रूप से साधना करनी आवश्यक है। अन्यथा अकेला निषे ध चित्त को रूखा-सुखा, रस-शून्य कर जाता है। 

            यह भी सत्य है कि एमग के जीवन में तुम अकेली नहीं हो; लेकिन मूलतः और गहरे में काम वासना शरीर की नहीं, मन की वृत्ति है। मन  पूर्णत: परिवर्तित हो, तो उस को परिणाम संबंधित दूसरे व्यक्ति पर भी पड़ना शुरू होता है। और जिससे इतने निक ट के संबंध हैं, वह तो और भी शीघ्रता से प्रभावित होता है। अभी जब तक मझे नहीं मिलती हो तब तक कछ बातें ध्यान में रखना। 

            १. एमग के प्रति चेष्ठित रूप से कोई दुर्भाव नहीं होना चाहिए। विरक्ति आरोपित होतो व्यर्थ है। 

            २. मैथन की अवस्था में भी सजग और जागरूक भाव रखो। उस अवस्था में भी साक्षी रखो। उस क्षण को भी जो ध्यान और सम्यक स्मृति का क्षण बना लेता है, वही एम ग की शक्ति को रूपांतरित करने में सफल होता है। मैं जब मिलूंगा तब इस संबंध में और बातें हो सकेंगी। ब्रह्मचर्य तो पूरा होते है। लेकि न, सव से पहली बात है, स्वयं की शक्तियों के प्रति मैत्री भाव। स्वयं की शक्तियों के प्रति शत्रुभाव रखने से आत्मक्रांति तो नहीं होती, आत्मघात अवश्य ही हो जाता है।वहां सबको मेरे प्रणाम कहना। पूना तुम नहीं आ रही हो तो अभाव तो लगेगा ही। 


    रजनीश के प्रणाम
    ४-६-१९६६ प्रति : सुश्री शिरीष पै, बंबई

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