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    दर्शन का जागरण - ओशो

    Awakening-of-Darshan-Osho


    चिदात्मन, 

            आपके पत्र मिले । मैं वाहर था। अत: शीघ्र प्रत्युत्तर संभव नहीं हो सका। अभी अभी ल औटा हूं, राणकपुर में शिविर लिया था, वह शिविर केवल राजस्थान के मित्रों के लिए था। इस लिए आपको सूचित नहीं किया था। पांच दिन का शिविर था, और कोई ६० शिविरार्थी थे-शिविर अभूतपूर्व रूप से सफल रहा है और परिणाम दिखाई पड़े हैं। उ न परिणामों से संयोजक मित्रों का साहस बढ़ा है, और वे जल्दी ही अखिल भारतीय स तर पर एक शिविर आयोजित करने का विचार कर रहे हैं। उसमें आपको आना ही है।

            यह जानकर अति आनंदित हूं कि ध्यान पर आपका कार्य चल रहा है, केवल मौन हो ना है। बस मौन हो जाना ही सब कुछ है। मौन का अर्थ वाणी के अभाव से ही नहीं मौन का अर्थ है, विचार का अभाव। चित्त जव निस्तरंग होता है, तो अनंत से संबंधि त हो जाता है। शांत बैठकर विचार प्रवाह को देखते रहें-कूछ करें नहीं; केवल देखें, वह केवल देखना ही विचारों को विसर्जित कर देता है। दर्शन का जागरण विचार-विकार से मुक्ति है। और जब विचार नहीं होते हैं तो चैतन्य का आविर्भाव होता है। यही समाधि है। 


    रजनीश के प्रणाम
    १७ जून १९६४ प्रति : लाला सुंदरलाल, दिल्ली

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