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    बूंद सागर है ही - ओशो

    Boond-Sagar-Hai-Osho


    मेरे प्रिय, प्रेम। 

            पत्र पाकर आनंदित हूं। बूंद को सागर बनना नहीं है। यही उसे जानना है। जो है-जैसा है-उसे वही और वैसा ही जानना सत्य है। सत्य मुक्तिदायी है। जयश्री को प्रेम, और सबको भी। 


    रजनीश के प्रणाम
    २४-४-१९६९ प्रति : श्री पुष्कर गोकाणी, द्वारका , गुजरात

    (श्री पुष्कर भाई गोकाणी ने यह जानना चाहा था कि क्या बूंद का सागर में खो जाना , एक व्यक्ति की अपनी निजता टदकपअपकनंसपजल को खो देने जैसा नहीं है? ऐसा मन को प्रेरक नहीं है।)

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