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    अनलिखा पत्र - ओशो

    Unwritten-Letter---Osho


    प्यारी दर्शन, प्रेम। 

            तेरा पत्र मिला है। उसे पाकर अति आनंदित हूं। इसलिए भी कि तूने अनलिखा-कोरा कागज भेजा है। लेकिन, मैंने उसमें वह सब पढ़ लिया है, जो कि तूने कहीं लिखा है, लेकिन लिखना चाहती थी। शब्द वैसे भी क्या कह पाते हैं ? और लिखकर भी तो जो लिखना था, वह सदा अनलिखा ही रह जाता है। इसलिए तेरा मौन पत्र बहुत प्यारा है। 

            वैसे भी जब तू मिलने आती है तो चुप ही रहती है। लेकिन तेरी आंखें सब कह देती हैं। और तेरा मौन भी। किसी गहरी प्यास ने तुझे स्पर्श किया है। किसी अज्ञात तट ने मुझे पूकारा है। प्रभु जब बुलाता है तो ऐसे ही बुलाता है। लेकिन कब तक तट पर खड़े रहना है? देख-सूरज निकल आया है और हवाएं नाव के पालों को उड़ाने को कैसी आतुर हैं। 


    रजनीश के प्रणाम
    ७-१२-१९६९ प्रति : सुश्री दर्शन वालिया, बंबई

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