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    जिसे भी सत्य को पाना है, उसे सत्य के संबंध में सारे मत छोड़ने होंगे - ओशो

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    जिसे भी सत्य को पाना है, उसे सत्य के संबंध में सारे मत छोड़ने होंगे - ओशो 


            मेरे पड़ोस में, गांव में एक आदमी रहता था। वह जंगल से तोतों को पकड़ कर ला ता और उनको पिंजड़ों में बंद कर देता। कुछ दिन वे तड़फड़ते उड़ने की कोशिश क रते, फिर वे पिंजड़े कि आदी हो जाते। यहां तक वे पिंजड़ों के आदी हो जाते कि । अगर उनके पिंजड़े को खोल दिया जाए तो वे थोड़ी देर बाहर जाकर वापस अपने ि पजड़े में आ जाते हैं। बाहर असुरक्षा लगती ओर भीतर सुरक्षा मालूम होती। 

            करीब-करीब ऐसी ही हमारे मन की हालत हो गयी है। हमारा चित्त, परंपरा, संस्का र, दूसरों के दिए गए विचार और शब्दों में इस भांति बंध गया है कि उसके बाहर हमें डर लगता है, घबड़ाहट होती है। डर लगता है कि कहीं सुरक्षा न खो जाए। क ही जिस भूमि को हम अपने पैर के नीचे समझ रहे हैं वह हिल न जाए, इसलिए ह म डरते हैं, इसलिए हम बाहर निकलने से घबड़ाते हैं। और जो अपने घरों के बाहर __नहीं निकल सकेगा, वह परमात्मा को कभी नहीं पा सकेगा। उससे मिलना हो तो सब घेरे तोड़ ही देने होंगे। जिसे भी सत्य को पाना है, उसे सत्य के संबंध में सारे मत छोड़ देने होंगे। जिसे भी सत्य को पाना है, उसे पार विश्वास को छोड़कर विवे क को जाग्रत करना होगा। जिसका विवेक जाग्रत होगा, वही केवल सत्य को, वही केवल धर्म के मूलभूत सत्य को अनुभव कर पाता है। 

    -ओशो 

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