तैरें नहीं, बहें - ओशो
मेरे प्रिय, प्रेम।
पत्र मिला है। मैं तो सदा साथ हूं। न चिंतित हों, न उदास। साधना को भी पर मात्मा के हाथों में छोड़ दें। जो उसकी मर्जी। स्वयं तो जो जावें-एक सूखे पत्ते की भांति। फिर हवाएं चाहे जहां ले जावें। क्या यही शून्य का अर्थ नहीं है? तैरें, नहीं, बहें। क्या यही शून्य का अर्थ नहीं है? वहां सबको मेरे प्रणाम।
रजनीश के प्रणाम
१०-९-१९६८ प्रति : श्री ओम प्रकाश अग्रवाल, जालंधर, पंजाब
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