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    नीति नहीं, योग-साधना - ओशो

    Yoga-not-policy-Osho


    प्रिय, आत्मन, प्रणाम। 

                मैं अभी अभी राज नगर (राजस्थान) लौटा हूं। वहां आचार्य श्री तुलसी के म र्यादा महोत्सव में आमंत्रित था । कोई कोई ४०० साधु-साध्वियों को ध्यान-योग के सा महिक प्रयोग से परिचित कराया है। अदभूत परिणाम हुए है। मेरा देखना है कि ध्यान समग्र धर्म साधना का केंद्रीय तत्व है और शेष, अहिंसा, अप रग्रह, ब्रह्मचर्य आदि उसके परिणाम हैं। ध्यान की पूर्णता-समाधि-उपलब्ध होने से वे अपने आप चले आते हैं। उनका विकास सहज ही हो जाता है। इस मूल साधना को भूल जाने से हमारा सब प्रयास बाह्य और सतही होकर रह जाता है। धर्म साधना को री नैतिक साधना नहीं है; वह मूलत: योग साधना है। केवल नीति नकारात्मक है औ र नकार पर कोई स्थायी भिति खड़ी नहीं है। योग विधायक है और इसलिए वह आध र है। मैं इस विधायक आधार को सव तक पहुंचा देना चाहता हूं। 


    रजनीश के प्रणाम
    १२ फरवरी १९६३ रात्रि। प्रति : लाला सुंदरलाल, दिल्ली ।

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