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    स्वयं डूब कर सत्य जाना जाता है - ओशो

    Truth-is-known-by-drowning-itself-Osho


    प्रिय आत्मन, 

            आपका पत्र मिल गया था। कुछ लिखने के लिए आपका कितना प्रेमपूर्ण आग्रह है! औ र मैं हूं कि अतल मौन में डूब गया हूं। बोलता हूं; काम करता हूं; पर भीतर है कि सतत एक शून्य घिरा हुआ है। वहां तो कोई गति भी नहीं है। इस भांति एक ही सा थ दो जिन जीता हुआ मालूम होता है। कैसा अभिनय है? पर शायद पूरा जीवन ही अभिनय है। और यह वोध एक अदभुत मुक्ति का द्वार खोल रहा है। वह जो क्रिया के बीच अक्रिया है-गति के बीच गति शून्य है-परिवर्तन के वीच नित्य है-वही है सत्य; वही है सत्ता। वास्तविक जीवन इस नित्य में ही है। उस के बाहर केवल स्वप्नों का प्रवाह है। सच ही, वाहर केवल स्वप्न हैं। उन्हें छोड़ने, न छोड़ने का प्रश्न नहीं-केवल उसके प्रति जागना ही पर्याप्त है। और जागते ही सब परिवर्तित हो जाता है। वह दीखता है जो देख रहा है। और केंद्र बदल जाता है। प्रकति से परुष पर पहंचना हो जाता है। यह पहुंच क्या दे जाती है? कहा नहीं जा सकता है। कभी कहा नहीं गया। कभी कहा भी नहीं जाएगा। स्वयं जाने विना जानने का और कोई मार्ग नहीं है। स्वयं पर कर मृत्यू जानी जाती है। स्वयं डूब कर सत्य जाना जाता है। प्रभु सत्य मग डुबाये यही कामन | है। 


    रजनीश के प्रणाम
    १३ अगस्त, १९६२ प्रभात प्रति : लाला श्री सुंदरलाल, बंगलों रोड, जवाहर नगर, दिल्ली-७

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