प्रतीक्षा - ओशो
प्यारी जया,
प्रेम। तेरा पत्र मिला है। तेरे प्राणों की प्यास को, मैं भलीभांति जानता हूं। और वह क्षण भी दूर नहीं है, जव वह तृप्त हो सकेगी। तू बिलकुल सरोवर के किनारे ही खड़ी है। केवल आंख ही भर खोलनी है। और मैं देख रहा हूं कि पलकें खुलने के लिए तैयारी भी कर रही है। फिर मैं साथ हूं -सदा साथ हूं-इसलिए जरा भी चिंता मत कर। धैर्य रख और प्रतीक्षा कर। वीज अपने अनुकूल समय पर ही टूटता है और अंकुरित होता है। वहां सबको मेरे प्रणाम कहना। शेष मिलने पर।
रजनीश के प्रणाम
प्रभात १९-९-१९६८ प्रति : श्रीमती जयवंती शुकल, जूनागढ़, गुजरात
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