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    शक्ति स्वयं के भीतर है - ओशो

      

    Power-is-within-oneself-Osho

    प्रिय कृष्ण चैतन्य, 

        प्रेम। 

                तुम्हारा पत्र पाकर आनंदित हूं। शक्ति है तुम्हारे स्वयं के भीतर। लेकिन, उसका तुम्हें पता नहीं है। इसलिए, तुम्हारी ही शक्ति को तुम्हीं को पाने के लिए भी निमित्त की जरूरत पड़ती जिस दिन यह जानोगे उस दिन हंसोगे। लेकिन तब तक मैं निमित्त का काम करने को राजी हूं। मैं तो हंसने ही रहा हूं और उस दिन की प्रतीक्षा कर रहा हूं; जब कि तुम भी इस व्र ह्म-अट्टहास (वेि उपव संनहीजमत) में सम्मिलित हो सकोगे। देखो : कृष्ण हंस रहे हैं, वुद्ध हंस रहे हैं। सूनो : पृथ्वी हंस रही है, आकाश हंस रहा है। लेकिन, आदमी रो रहा है। क्योंकि, उसे पता ही नहीं है कि वह क्या है। आह! कैसा मजा है? कैसा खेल है? सम्राट भीख मांग रहा है और मछली सागर में प्यासी है!

    रजनीश के प्रणाम 

    २७-१०-१९७० प्रति : स्वामी कृष्ण चैतन्य, संस्कार तीर्थ, आजोल गुजरात

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