जीवन की अखंडता - ओशो
मेरे प्रिय, प्रेम।
आपका प्रेमपूर्ण पत्र पाकर अत्यंत अनुगृहीत हूं। लेकिन, जीवन को मैं अखंड मानता हूं। और उसे खंड खंड तोड़कर देखने में असमर्थ हूं। वह अखंड है ही। और चूंकि आज तक उसे खंड खंड करके देखा गया है, इसलिए वह विकृत हो गया है। न राजनीति है, न नीति है, न धर्म है। है जीवन। है परमात्मा। समग्र और अखंड। उसे उसके सब रूपों में ही पहचानना, खोजना और जीना है। इसलिए मैं जीवन के समय पहलुओं पर बोलना जारी रखेंगा। और अभी तो सिर्फ शुरुआत है। पत्रकारों को उत्तर देना तो सिर्फ भूमिका तैयार करनी है। लेकिन सब पहलुओं से उसकी यात्रा करनी है।
सब मार्गों से उसकी ओर ही चलना है। शायद इस सत्य को समझने में मित्रों को थोड़ी देर लगेगी। वैसे सत्य को समझने में थोड़े देर लगना अनिवार्य ही है। लेकिन जो सत्य के खोजी हैं वे भयभीत नहीं होंगे। सत्य की खोज में अभय तो पहली शर्त है। और यह भी ध्यान में रहे कि अध्यात्म जब तक समग्र जीवन का दर्शन नहीं बनता है तव तक वह नपुंसक ही सिद्ध होता, और उसकी आड़ में सिर्फ पलायनवादी ही शर ण पाते हैं। अध्यात्म को बनाना है शक्ति। अध्यात्म को बनाना है क्रांति । और तभी अध्यात्म को बचाया जा सकता है। वहां सबको मेरा प्रणाम कहें।
रजनीश के प्रणाम
२७-३-६९ प्रति : सर्व श्री एम. टी. कामदार,
सुरेश वी. जोशी, नानुभाई और श्री कारेलिया, भावनगर (गुजरात)
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