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    प्यासी प्रतीक्षा-प्रेम की - ओशो

     

    प्यासी प्रतीक्षा-प्रेम की - ओशो Thirsty-wait-love-osho

    प्रिय सोहन, 

            पत्र मिला है। मैं तो जिस दिन से आया हूं, उसी दिन से प्रतीक्षा करता था। पर, प्रती क्षा भी कितनी मीठी होती है! जीवन स्वयं ही एक प्रतीक्षा है। बीज अंकुरित होने की प्रतीक्षा करते हैं और सरिताएं सागर होने की। मनुष्य किसकी प्रतीक्षा करता है? वह भी तो किसी वृक्ष के लिए वीज है और किसी सागर के लिए सरिता है! कोई भी जब स्वयं के भीतर झांकता है, तो पाता है कि किसी असीम और अनंत में पहुंचने की प्यास ही उसकी आत्मा है। और, जो इस आत्मा, को पहचानता है, उसके चरण परमात्मा की दिशा में उठने प्रारं भ हो जाते हैं; क्योंकि प्यास का वोध आ जावें और हम जल स्रोत की ओर न चलें, यह कैसे संभव है? यह कभी नहीं हुआ है और न ही कभी होगा। जहां प्यास है, वहां प्राप्ति की तलाश भी है। मैं इस प्यास के प्रति ही प्रत्येक को जगाना चाहता हूं, और प्रत्येक के जीवन को प्रती क्षा में बदलना चाहता हूं। प्रभू की प्रतीक्षा में परिणत हो गया जीवन ही सद जीवन है। जीवन के शेष सब उपयग उपव्यय हैं और अनर्थ हैं। माणिक वाबू को प्रेम। 

    रजनीश के प्रणाम
    २४-४-६५ (दोपहर) प्रति : सुश्री सोहन, पूना

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