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    ढाई आखर प्रेम का - ओशो

    ढाई आखर प्रेम का - ओशो Two-and-a-half-love-Osho


    प्रिय सोहन, 

            तू इतने प्यारे पत्र लिखेगी, यह कभी सोचा भी नहीं था! और ऊपर से लिखती है कि मैं अपढ़ हूं! प्रेम से बड़ा कोई ज्ञान नहीं है और जिनके पास प्रेम न हो, वे अभागे ही केवल अपढ़ हो सकते हैं। जीवन में असली वात बुद्धि नहीं, हृदय हैक्योंकि, आनंद और आलोक के फूल बुद्धि से नहीं, हृदय से ही उत्पन्न होते हैं। और, वह हृदय तेरे पास है और बहुत है। क्या मेरी गवाही से बड़ी गवाही भी तू खोज सकती है? यह तूने क्या लिखा है कि मुझसे कोई भूल हुई हो तो मैं लिखू? प्रेम ने आज तक जमीन पर कभी कोई भूल नहीं की है। सब भूलें अ-प्रेम में होती हैं। मेरे देखे तो जीवन में प्रेम का अभाव ही एकमात्र भूल है। वह जो मैंने लिखा था कि प्रभु मेरे प्रति ईर्ष्या पैदा करे, वह किसी भूल के कारण नह f; वरनजो अनंत आनंद मेरे हृदय में फलित हुआ है उसे पाने की प्यास तेरे भीतर भी गहरी से गहरी हो, इसलिए। मेवलडी रानी! उसमें तेरे चिंतित होने का कोई कारण नहीं था। माणिक बाबू को मेरा प्रेम। बच्चों को स्नेह । 


    रजनीश के प्रणाम
    २२ मार्च १९६५ (रात्रि) प्रति : सुश्री सोहन वाफना, पूना

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